दीपावली
जग-मग, जग-मग झंकृत लड़ियों से ,
तम के ताण्डव को वितीर्ण कराके,
चहुँ ओर प्रकाश करे;
आशा के दीप जले |
दुःख से आप्लावित सुधी जनों के
आँगन में छाये कारे बादल;
तत्क्षण दूर टरे |
आशा के दीप जले |
नव सपनों के नित नव कोपल को,
तम की कारा तोड़ ,
नित नव राह मिले;
आशा के दीप जले |
सुख की अभिलाषा में भाग रहे,
जन- मन की झोली में,
सुख के सपनों की नींद मिले;
आशा के दीप जले |
संस्कृति और सभ्यता अपनी;
अपने संस्कार से प्लावित हो,
अपनी राह बहे;
आशा के दीप जले |
मानव मूल्य तिरोहित न हों,
मूल्य मनोहर मन भावन से,
जीवन मूल्य लसे;
आशा के दीप जले |
वैमनस्य की कारा टूटे;
मेलजोल की गंगा फिर से,
अपनी धार बहे;
आशा के दीप जले |
जीवन के मधुमय मृदंग पर;
लोकगीत और मधुर राग की;
नित नव गीत चढ़े;
आशा के दीप जले |
जनमानस की संकीर्ण भावना;
चहूँ ओर तथा अतिवाद प्रबलतम;
अति शीघ्र जले;
आशा के दीप जले |
सहृदयता, माधुर्य ,लावण्य आदि,
जीवन की बगिया के सुन्दर फूलों को;
फिर से लसित करे ;
आशा के दीप जले |
आशाओं की सुन्दर लणियों सी;
सबके जीवन में फिर से;
सारे जीवन रस भर दे;
आशा के दीप जले |
मौलिक एवं सर्वाधिकार सुरक्षित |
रवि शंकर उपाध्याय